सेक्सन 9 या दांपत्य जीवन की पुनर्स्थापना ( Restitution of Conjugal Rights《RCR》) – कानून या मजाक?
May 29, 2020
लेखक शशांक सिन्हा, सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन
#SIFFian, www.saveindianfamily.org
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क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में हर विषय के लिए तमाम तरह के कानून हैं, पर परिवार बचाने के लिए कोई भी ठोस कानून हीं नहीं हैं!!जी हाँ आपने बिल्कुल सही सुना और समझा, लेकिन बस इसके नाम पर अपने देश की आम जनता को मूर्ख बनाने के लिए कानून बनाने वालों ने और अपनी भारत सरकार के द्वारा एक कानून बनाया गया जिसे सेक्सन 9 या सरल भाषा में दांपत्य जीवन की पुनर्स्थापना ( Restitution of Conjugal Rights《RCR》) भी कहा जाता है, अपने देश भारत में कानून की अनेकों पुस्तकें और धाराओं के बीच में परिवार बचाने के लिए बस यही एकमात्र छोटा सा कानून मौजूद है।
भारत का कानून बहुत हीं अजीबोगरीब है और वर्तमान परिदृश्य में इसमें सुधार करना बहुत आवश्यक है, छोटी मोटी प्यार और तकरार तो हर दांपत्य जीवन में होती हीं रहती है और ऐसी तकरार तो आपस में प्रेम और भी ज्यादा बढ़ा देती है, आम तौर पर होता यह है कि जब भी कोई भी पति- पत्नी के बीच किसी भी तरह का विवाद उत्पन्न होता है तो पहले कोशिश की जाती है कि मामला आपस में बातचीत से हीं सुलझ जाये,लेकिन समस्या तब आती है जब मामला थोड़ा बड़ा हो जाये या जानबूझकर मामला बड़ा बना दिया जाए और बात न्यायालय तक पहुंचने की नौबत आ जाये। जाहिर सी बात है दोनों पति पत्नी के बीच अपनी कुछ अलग समस्याएं भी होंगी तभी ऐसा कुछ हुआ।खास कर यह कानून पुरुषों के लिए तो सबसे ज्यादा आत्मघाती है आइये अब समझने की कोशिश करते हैं कि कैसे यह परिवार बचाने वाला कानून आम जनता या पुरूषों के लिए आत्मघाती है या सिर्फ मूर्ख बनाने के लिए बनाया गया है!! अब यह परिवार बचाने वाले कानून का असली मतलब समझ लिया जाए!!
● RCR या Section 9 कानून क्या कहता है और इसका वास्तविक अर्थ क्या है?
* साधारण बोल चाल की भाषा में इस कानून का मतलब युं तो परिवार बचाना है पर इसके और भी कई मतलब कानून की पुस्तक में वर्णन किया गया है, इसका एक मतलब होता है कि आपने अपने पति या पत्नी के बुरे कर्मो को माफ कर दिया है और उसके साथ आप अपना दांपत्य जीवन प्रारंभ करने के लिए तैयार हैं, इस कानून का दूसरा मतलब यह है कि पति या पत्नी जिसके भी विरूद्ध यह धारा लगाई गयी है उसने किसी एक का बिना कोई ठोस कारण के परित्याग कर दिया है और न्यायालय में आकर दूसरे पक्ष को जबाब देना होता है कि क्यों उसने एक पक्ष का त्याग कर दिया है, इस कानून का तीसरा मतलब यह भी है कि एक पक्ष तलाक़ चाहता हो और दूसरा पक्ष परिवार बचाना चाहता हो, इस कानून के तहत अगर दूसरा पक्ष न्यायालय में कोई उचित कारण नहीं बता पता है तो अदालत जीतने वाले पक्ष के हक में फैसला सुनाती है कि दूसरे पक्ष को वापस आकर अपने दाम्पत्य जीवन की पुनर्स्थापना करने का आदेश पारित करती है।
●इस कानून का उपयोग क्यों किया जाता है और इसके क्या लाभ हैं?
* इस कानून का उपयोग पति या पत्नी उचित कारण के से सिर्फ परिवार बचाने के लिए कर सकते हैं।
* पति अगर इस मुकदमे को जीत जाता है तो भविष्य में इस कानून का उपयोग पत्नी को मेंटनेंस देने से बचने के लिए भी किया जा सकता है।
* यदि इस कानून के तहत एक तय समय सीमा के अंदर हारने वाला पक्ष दांपत्य जीवन की पुनर्स्थापना कर पाने में असफल रहता है तो भविष्य में जीतने वाला पक्ष इसका उपयोग तलाक़ के लिए भी कर सकता है।
● कुछ पति या पत्नी इस कानून का दुरुपयोग करके इस कानून के साथ बहुत हीं शातिर तरीके से खिलवाड़ करते हैं।
* कुछ पति या पत्नी इसे महज न्यायालय को दिखाने के लिए या एक दूसरे के विरुद्ध हथियार बनाकर या अपने अंहकार के संतुष्टि के लिए भी करते हैं।
* कुछ पति या पत्नी इसका दुरुपयोग दूसरे पक्ष की बात सामने आने के बाद अपना अगला चाल चलने के लिए भी करते हैं, अगर किसी पक्ष ने पहले तलाक़ के लिए आवेदन दिया तो दूसरा पक्ष उसे परेशान करने के लिए भी कर लेता है।
* इस कानून का सबसे ज्यादा दुरुपयोग पत्नी करती है, क्योंकि साधारणतः पत्नी को इस कानून से कोई बहुत ज्यादा लाभ नहीं होता और इस तरह का विवाद सबसे ज्यादा एक पति के लिए कष्टदायक होता है, क्योंकि पति के पास वैवाहिक मतभेद होने की स्थिति में कानून नाम का एक मात्र और सुरक्षित प्रथम सहारा या हथियार यही होता है।
● इस कानून या धारा की सबसे बड़ी खामी क्या है और यह धारा एक पुरुष के लिए क्यों आत्मघाती होता है?
* यह धारा पारिवारिक न्यायालय में एक सिविल मामले के तौर पे दर्ज किया जा सकता है और यह बहुत लंबा चलता है और उबाऊ होता है, जिससे ना जाने कितने महत्वपूर्ण व कीमती वर्ष व्यर्थ निकल जाते हैं।
* इस धारा के अंतर्गत पति सोचते हैं कि पत्नी को उनके शहर आकर मुकदमा लड़ना होगा, लेकिन पत्नी इस मुकदमे को अपने शहर में स्थानान्तरित करने के लिए उच्च न्यायालय में आवेदन दे कर स्थांनारित करा सकती है, इस धारा के अंतर्गत कई मामलों में पति को उल्टा मुकदमा लड़ने के लिए पत्नी को खर्च भी देने होते हैं।
* इस धारा के अंतर्गत जब कभी पति या पत्नी मामला दर्ज कराते है तो पति या पत्नी मामले के विपरीत अपना मामला बना कर न्यायालय में पेश करते हैं। ऐसे तरीके पत्नी ज्यादातर वैवाहिक मतभेद में इस्तेमाल करती है।
* प्रथम दृष्टिकोण में पति के पास कानून के रूप में एकमात्र विकल्प यह रहता है तो पति द्वारा ऐसा मामला दर्ज होते हीं पत्नी को अहसास हो जाता है कि पति अपनी पत्नी के साथ रहने को लेकर परेशान है
* इस सिविल मामले के अंतर्गत इस मामले को लंबा खींचने के लिए पत्नी पारिवारिक न्यायालय में अनुपस्थित रहती है, और इस तरह न्यायालय में अनुपस्थित रहने पर भी अपने पारिवारिक न्यायालय में किसी भी तरह का सजा का कोई प्रवाधान नहीं है।
* इस सिविल मामले के विपरीत नहीं रहने वाली पत्नी अपने पति पर तरह तरह के अपराधिक मामले बना कर अपने पक्ष में बने 52 कानून का दुरुपयोग करते हुए, पति और ससुराल वालों जेल भेजने की मुहिम चला देती है। और बेचारा पति यह साबित करने में परेशान रहता है कि वह सही है और पत्नी गलत है और उसे पति के हीं साथ रहना चाहिए।
* वर्षो बीत जाने के बाद अगर पति यह साबित भी कर पाया कि पत्नी को ससुराल रहना चाहिए तो भी हमारा सुप्रीम कोर्ट भी किसी भी पति या पत्नी को एक साथ रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकता।
* हमारे देश के हर नागरिक को पता होना चाहिए कि पूरा कानून सिर्फ महिलाओं के पक्ष में बना है और हर जगह सिर्फ पत्नी की बात हीं पहले सुनी जाती है, यह मान कर भी चला जाता है कि पत्नी अगर पति के साथ नहीं रह रही तो जरूर कोई बड़ा कारण रहा होगा और यह तो सभी को ज्ञात होता है जिसको आपके साथ नहीं रहना उसके पास बहानों कि कोई कमी नहीं होती।
■सारांश
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि आधुनिक समय में यह मामला एक खेल की तरह बन गया है और यह मामला दर्ज करने वाला मूर्ख बन जाता है, अतः खासकर पुरुष को यह धारा कभी भी पत्नी के उपर नहीं लगानी चाहिए, आधुनिक समय में परिवार तोड़ने के लिए कई कानून का निर्माण हो चुका है पर जो सबसे महत्वपूर्ण परिवार जोड़ने के लिए कोई भी ठोस कानून नहीं बनाया गया, जबकि परिवार बचाना सबसे महत्वपूर्ण हैं, परिवार है तो देश है।अब आधुनिक समय में शातिर पत्नीयां और फेमिनिस्ट इस धारा और कानून का अपने स्वार्थ के हिसाब से सबसे ज्यादा दुरुपयोग कर रही है। इस पारिवारिक न्यायालय के वर्षो पुराने ढांचे में बदलाव करने की अब आवश्यकता है इसके लिए पूरा देश समाज एन जी ओ को मिलकर इसमें बदलाव करने की मांग की जानी चाहिए।
■ नोट
यह लेख महज इस धारा को अंदरूनी रूप से समझने के लिए लिखी गयी है विस्तृत जानकारी के लिए सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन (SIFF) से संपर्क करें या नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करें।
लेखक✍✍✍✍✍✍✍✍✍
शशांक सिन्हा
SIFFian एक्टीविस्ट
सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन( SIFF)
हजारीबाग, झारखंड
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