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भारत देश में पुरुषों पर बढ़ता उत्पीड़न

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विवाह एक पवित्र बंधन है, प्राचीन काल से विवाह को ईश्वर द्वारा निर्धारित एक अटूट बंधन माना गया है जिसमें पति पत्नी अपना संपूर्ण जीवन एक दूसरे के सुख-दुख बांटने में लगा देते हैं | जब लड़की मायके से विदा होती है तो उसकी मां अपनी बिटिया को शिक्षा देती थी की ससुराल को ही तू अपना असली घर समझ, पति को ईश्वर तुल्य मान, सास- ससुर को माता पिता तथा नंद देवर को बहन -भाई मानना | उनकी सेवा करना ही तेरा परम धर्म तथा कर्तव्य है | उस समय की लड़कियां भी छोटी उम्र की हुआ करती थी तथा अपनी मां की इस आदेश को जीवन पर्यंत निभाती थी| अपने ससुराल के ऊपर आने वाली प्रत्येक विपत्ति का यथासंभव दूर करने का प्रयास करती थी चाहे उनको उसमें कितना ही कष्ट क्यों ना हो |

परंतु बड़े दुख के साथ कहना पड़ता है कि आज के इस आधुनिक परिवेश में विवाह की परिभाषा ही बदल गई है | लड़कियों की आधुनिक सोच ने इस पवित्र बंधन को एक समझौता समझ लिया है | जब तक पति उसकी हर इच्छा को पूरा करता रहेगा तब तक तो वह पति के घर में रहेगी, कोई भी इच्छा  पूर्ण ना होने पर वह अपने पति पर अलग होने का दवाब बनाने लगती है | पति को धमकी दी जाती है कि यदि उसके परिवार के सदस्यों  ने उसका कहना नहीं माना, तो वह घर छोड़ कर चली जाएगी तथा उसे तरह-तरह के मुकदमो में फंसा देगी | ना तो वह अपने पति के माता-पिता की इज्जत करती है ना ही वह उसके भाई बहन से प्रेम पूर्वक बर्ताव करती है | बेचारा पति अपनी पूरी कमाई पत्नी पर लगा कर भी उसे संतुष्ट करने में सक्षम नहीं हो पाता | पत्नी की यह तृष्णा कभी शांत नहीं होती, निरंतर बढ़ती हुई आवश्यकताएं पति को बेहाल कर देती हैं | एक तरफ तो उसके माता-पिता का अपमान भाई बहनों का निरादर और दूसरी ओर पत्नि के द्वारा दी गई धमकियों से उसका जीना मुहाल हो जाता है | यह लड़की के कुसंस्कारों का परिणाम होता है, और सबसे बड़ी बात तो यह है की इस अत्याचार में लड़की के माता-पिता भी बराबर के भागीदार होते हैं | ऐसी महिलाएं सरकार द्वारा बनाए गए अनेक कानून जैसे दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा, भरण पोषण इत्यादि कानून को माध्यम बनाती हुई  पुरुषों का शोषण करती हैं | उनको अनेक प्रकार के झूठे केसों में फसाकर मनचाहा मुआवजा चाहती हैं| अब तो इस तरह के केस एक व्यापार की तरह होते जा रहे हैं|

 

इस तरह की महिलाएं समाज के लिए एक अभिशाप है | ऐसे माता-पिता जो इन लड़कियों को जन्म देते हैं वह इस समाज को तहस-नहस करने वाले एक राक्षस है | यदि ऐसी महिलाओं के प्रति हमारा कानून तथा समाज जागरूक नहीं हुआ तो हमारे भारतीय संस्कृति का जो ध्वज पूरे विश्व पर लहरा रहा है वह अपमानित हो जाएगा | जरूरत है आज देश को एक निष्ठावान पत्नी के रूप में एक निष्ठावान नागरिक की जो अपने परिवार को जोड़ने के साथ-साथ इस समाज में भी एक मर्यादित परंपरा कायम कर सके,  ना कि दूसरों के द्वारा भड़काए जाने पर एक निंदनीय कुकर्म कारण बने |  यदि महिला द्वारा इस व्यापारिक क्रियाकलाप को ना रोका गया तो जो एक संस्कारी महिला है उसकी सोच भी अमर्यादित होने लगेगी |

अब सोचने का समय गया, कुछ करने का समय आ गया है, सब एक साथ उठो और ऐसी कलंकित परंपरा को, ऐसी महिलाओं को समाज से तिलांजलि दो | उठो जागो और ऐसी महिलाओं के खिलाफ आवाज उठाओ जो अपने पति को कानून की आड़ में सताने का प्रयास करती हैं, और उनसे पैसे लेकर दूसरे विवाह की तैयारियों में जुट जाती हैं और यह प्रचलन यूं ही चलता रहता है

लेखिका
आशा अरोड़ा, वरिष्ठ अध्यापक
(MA, B. Ed)

 

 

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